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गुरुवार, अक्तूबर 06, 2011

जयगीतम्

बच्चो,
इस कहानी को पढ़ते समय आपकी आंखों में नमी उतरेगी. संभव है वे छलछला भी जाएं. तब बिना उदास हुए, बिना उम्मीद खोए सोचना कि इतिहास की कौन-सी भूलें हमें कौन-सा सबक दे सकती हैं. क्योंकि मनुष्यता के लिए इतिहास से बड़ा शिक्षक कोई नहीं होता. यह इतिहास ही है जो कभी गुरु की भूमिका निभाता है तो कभी शिष्य बनकर हमारे सामने जिज्ञासाओं का पिटारा खोलकर बैठ जाता है.
यह कहानी जिस पीपल से जुड़ी है वह बहुत बूढ़ा है. इतना कि उसकी आयु के बारे में ठीक-ठीक अनुमान लगा पाना भी संभव नहीं है. यहां तक कि कुछ दूर नदी में रहने वाला कछुआ जो अपनी आयु दो सौ साल से भी ज्यादा बताता है; पीपल की आयु का जिक्र होते ही चुप्पी साध लेता है. गांव से बाहर खाली मैदान में वह उगा है. बिना पत्तों वाला—ठूंठ! उदास और अनमना. उजाड़ और गुमसुम. न जाने कौन सा शाप लगा है उसे कि पक्षी दूर-दूर रहते. जानवर उसकी शरण लेने से कतराते. और तो और आदमी भी उस ओर जाने से बचते हैं. उस मैदान में और भी कई प्रकार के वृक्ष हैं. फूल पत्ती वाले, हरे-भरे और फलदार. जिनके गुणों के कारण उनकी चर्चा दूर-दूर तक होती. पर उस पीपल का जिक्र होते ही सब चुप्पी साध लेते. एक उदासी-सी लोगों को घेर लेती.
जेठ-अषाढ़ के दिन थे. आसमान तप रहा था. तालाब-पोखर सभी सूख चुके थे. सभी को बारिश का इंतजार था. मगर बादल थे कि झलक दिखाकर ही उड़न-छू हो जाते. एक दिन नन्ही चिरैया धूप और प्यास से व्याकुल होकर आसमान में चक्कर काट रही थी. अचानक गर्मी से उसका दिल घबराया. चक्कर काटती-काटती वह जमीन पर गिरी और बेहोश हो गई. ठूंठ पीपल के ठीक नीचे. कहीं और गिरी होती तो अनेक पक्षी उसकी मदद को आ जाते. मगर उस पीपल के पास आने का साहस किसी का न हुआ. चिरैया घंटों बेहोश पड़ी रही. आखिर शाम हुई. चिरैया ने आंखें खोलींे तो उसे लगा कि कोई उसके बदन को हौले-हौले सहला रहा है. खिली चांदनी में उसने देखा कि एक बूढा जिसने अपनी देह पर वृक्षों की छाल लिपेटी हुई थी, उसके पास बैठा है. भोली चिरैया डर से पानी-पानी हो गई.
डरो मत बेटी.’ बूढे ने कहा. पर चिरैया को तसल्ली न हुई.
अब कैसी तबियत है बेटी?’ बूढे ने दुबारा पूछा.
आप कौन हैं?’
मैं वही अभागा पीपल हूं जिसे कोई प्यार नहीं करता.’ इतनी देर में चिरैया संभल चुकी थी.
बिना कारण कोई क्यों नफरत करेगा. आप ही में कोई कमी होगी?’
हां, लोग कहते हैं कि मैं भुतहा हूं.....वे गलत भी नहीं हैं.’ चिरैया की बात पर उदासमना पीपल बोला, ‘जिससे हर कोई नफरत करे, पंछी जिसके पास आने से घबराएं, आदमी जिससे दूर-दूर भागें, और तो और पेड़ होकर भी जो किसी जरूरतमंद को छाया तक न दे सके. वह भुतहा ही तो हुआ बेटी.’
क्या आप हमेशा से ही ऐसे हैं?’
हमेशा से...? पीपल जैसे यादों में खो गया. ‘हां, वर्षों बीत गए. अब तो लगता है कि जैसे मैं धरती मैया की कोख से इसी तरह मनहूस जन्मा था.’ पीपल ने दुखी स्वर में बताया. सहसा वह अपने हाथ कानों तक ले गया, ‘नहीं-नहीं....ऐसा कहकर मैं धरती माता की कोख को लांक्षित नहीं कर सकता. मुझे माफ कर दो बेटी.’
फिर आपकी यह हालत कैसे हुई. सारे पत्ते कैसे झड़ गए?’
लंबी और दुख-भरी कहानी है बेटी.’ पीपल की बात सुनकर चिरैया का मुंह उतर गया—
मैं बहुत छोटी हूं दादा. आपका दुख तो हर नहीं सकती. फिर भी यदि आप मुझे बताएं तो आपकी बहुत कृपा होगी.’
न जाने कितने वर्षों के बाद किसी ने मुझसे बातें कर, मुझे समझने की कोशिश की है. इस कारण मैं तेरा अहसानमंद हूं बेटी...आ बैठ...मैं अपने बारे में सब बताऊंगा....एक-एक बात जो शताब्दियों से सीने में कील-सी अड़ी है.’ पीपल ने कहा. नन्ही चिरैया संभल कर बैठ गई. बूढे पीपल ने खंखारकर कहना शुरू किया—


इस बात का अंदाजा कोई नहीं लगा सकता कि आपस की फूट ने कितनों के घर उजाड़े और कितने मुल्क बरबाद किए हैं. करीब दो सौ वर्ष हुए. उन दिनों अंग्रेज पूरे देश पर अपना अधिकार जमा चुके थे. हिंदुस्तान की फूट का ही नतीजा था कि लगभग एक लाख अंग्रेज तीस करोड़ हिंदुस्तानियों पर हुकूमत चला रहे थे. यहां उन दिनों नवाब चिम्मन खां की रियासत थी. उसके दादा मरहूम सादिक मियां बहुत बहादुर सिपाही थे और मैसूर के नवाब हैदर अली के साथ अंग्रेजों से कई लड़ाइयां लड़ चुके थे. यह रियासत उन्हें हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान की ओर से बतौर इनाम प्राप्त हुई थी. टीपू सुल्तान की हार के बाद मैसूर रियासत पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया. इसी के साथ और कई राजाओं का तेज भी बिखर गया. बहुतों ने अंग्रेजों की गुलामी करना शुरू कर दिया.
सादिक मियां के बाद उनका बेटा झम्मन खां नबाव बना. अपने पूर्वजों के गौरव को भुलाकर वह अंग्रेजों का पिठ्ठू बन गया और उनके आगे हाजिरी बजाने में ही अपनी शान समझने लगा. प्रजा उससे परेशान हो गई. शराब और बुरी लतों के कारण वह रायबहादुरी का खिताब मिलने से पहले ही अल्लाह के दरबार में चला गया. बाद में उसका बेटा चिम्मन खां रियासत पर कलंक की तरह सवार हो गया. बाप की तरह चिम्मन खां भी कायर बुजदिल और व्याभिचारी साबित हुआ.
राजाओं और नवाबों ने भले ही अपने हथियार डाल दिए हों. किंतु जनता ने अंग्रेजों से अभी तक हार नहीं मानी थी. छोटे-छोटे किसान और कामगार जब-तब अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजाते रहते थे. चिम्मन खां तो कमजोर नबाव था शराब और जुए में धुत रहने वाला. इस कारण विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों को ही आना पड़ता था. लेकिन सेना का पूरा खर्च नबाव को ही उठाना पड़ता था. लौटते हुए सैनिक प्रजा पर खूब अत्याचार करते. और कभी-कभी तो वे अनाचार की हर सीमा पार कर जाते थे. ऐसी हरकतें आग में घी डालने का काम करतीं.
एक बार एक विद्रोह पर फतह पाने के बाद अंग्रेज सेना वापस लौट रही थी. घमंड से चूर. निरीह जनता को लूटती-खसोटती. कि एक गांव में एक नन्ही और मासूम बालिका पर नजर पड़ते ही सेनानायक ने अपना घोड़ा रोक दिया. इस बात को फैलते ही गांव-भर में खलबली मच गई. खबर मिलते ही लड़की के माता-पिता दौड़े-दौड़े आए और सेनानायक के पैरों में पड़कर बच्ची को छोड़ देने की भीख मांगने लगे. तब सेनानायक राक्षस के समान अट्टहास करते हुए बोला—
भाग जाओ, नहीं तो तुम सब को गोली से उड़ा देगा.’
लड़की बाज के पंजे में मासूम चिरैया की तरह तड़फ रही थी.
सरकार हमारी यह इकलौती बेटी है. इसे कुछ हुआ तो हम बरबाद जाएंगे.’ लड़की का पिता सेनानायक के पैर पकड़कर गिड़गिडा़या. उसपर रहम खाने की बजाए सेनानायक ने जूते की जोरदार ठोकर उस किसान की छाती पर मारी. बूढ़ा और कमजोर किसान बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा. उसकी पत्नी संभालने के लिए झुकी. सेनानायक ने आगे बढने का आदेश सुना दिया. उस समय गांव-भर के लोग वहां जमा थे. पर केवल तमाशबीन. मासूम तड़फती हुई बच्ची को बगल में दबाए सेनानायक आगे बढ़ा ही था कि तभी— धांय-धांय! की आवाज से दसों दिशाएं गूज उठीं. सेनानायक के मुंह से ‘हाय’ निकली और वह जमीन पर आ गिरा. उसके तुरंत बाद दो सैनिकों की भी चीख निकली और वे भी धरती पर लोटने लगे. अचानक हुए हमले से सैनिक घबरा गए और उनमें भगदड़ मच गई.
सारा कुछ पलक झपकते ही घटा था कि तभी एक गंभीर स्वर उस मैदान में गूंजने लगा—
चाची, बेटी को घर ले जाओ.’ लोगों ने देखा. बीस-बाइस बरस का सुदर्शन युवक हाथ में बंदूक लिए खड़ा था. उसका रंग तांबई था पर आंखों में तेज इतना कि बुरी नजर देखने वालों की आंखें चैंधिया जाएं. लोगों ने उसे पहचान लिया. वह उन्हीं के गांव के मास्टर गंगाधर का इकलौता बेटा चंद्रकेतु था. मास्टर गंगाधर लोककवि भी थे. गांव-गांव घूमकर लोगों को आजादी के बारे में समझाते और संगठित होने की प्रेरणा दिया करते थे. उनके गीतों में छिपी चिंगारियां नबाव चिम्मन खां से सहन न हुईं. एक दिन उसने मास्टर गंगाधर को बुलवा भेजा और पेड़ से लटका कर सरेआम फांसी लगवा दी. मेरी ही डाल से लटके-लटके उनके प्राण निकले.’
बूढे पीपल ने गहरी सांस ली. नन्हा-सा आंसू चिरैया की आंख से भी फिसला. पीपल को लगा जैसे वर्षों से सूखी उसकी धमनियों में जीवनरस बहने लगा हो.
बहादुर चंद्रकेतु के बारे में कुछ बताओ दादा?’ नन्ही चिरैया ने पूछा. पीपल सुनाने लगा—
चंद्रकेतु सीधा-सादा युवक था. बुद्धि और साहस उसको विरासत में मिले थे. सेनानायक की गंदी हरकत देख उसका खून खौल उठा था. वहीं खड़े सैनिक से बंदूक छीनकर उसने उसपर हमला किया था. वह जानता था कि अपने सेनापति की मौत को अंग्रेज आसानी से नहीं लेंगे. इसलिए उसने उसी वक्त गांव छोड़ दिया. चंद्रकेतु के शौर्य की खबर चंदन महक-सी हवा में फैली और देखते ही देखते इलाके-भर पर छा गई. नबाव के दुराचारों और अंग्रेेजों के अत्याचारों से उकताए लोग भीतर ही भीतर उसकी बहादुरी का बखान करने लगे. कुंवारी लड़कियां पति रूप में उसकी कामना करने लगीं.
कालांतर में नवाब के आतंक से त्रस्त कुछ और युवक चंद्रकेतु के साथ रहने लगे. कुछ ही दिनों में उनकी संख्या अच्छी-खासी हो गई. जहां भी अत्याचार होता दिखता चंद्रकेतु अपने दल-बल के साथ वहां पहुंच जाता. अंग्रेज उसके नाम से कांपते. चिम्मन खां जैसे निकम्मे और कमजोर नबावों के पसीने छूटने लगते. कुछ ही महीनों के भीतर चंद्रकेतु की बहादुरी का डंका चारों ओर बजने लगा. सैंकड़ों उत्साही युवकों के मिल जाने से उनके दल ने छोटी-सी सेना का रूप ले लिया था. जिसकी बहादुरी से अंग्रेज थर्राने लगे. अपने दूतों के माध्यम से उन्होंने चंद्रकेतु को अपनी ओर मिलाने का प्रस्ताव भेजा. जवाब में उसी दूत के जरिए उसने कहलवाया—
अंग्रेजों से कह देना कि मेरा रोम-रोम अंगार है. नजदीक आए तो भस्म हो जाएंगे.’ यह संदेश सुनकर अंग्रेज जनरल सचमुच ही जल-भुन गया. उसने चंद्रकेतु की तलाश के लिए पूरी सेना झोंक दी.

चंद्रकेतु ने उन दिनों विंध्याचल की पहाड़ियों को अपना ठिकाना बनाया हुआ था. वहीं से वह अवसर देखकर दुश्मन सेना पर वार करता. उसके भरोसे के सैनिक उन पहाड़ियों पर हमेशा नजर रखते. एक दिन अचानक एक लड़के को उन्होंने वहां भटकते हुए देखा. लड़के को कब्जे में कर वे चंद्रकेतु के सामने ले गए. चंद्रकेतु ने उसे देखा. वह बाइस-तेइस साल का अत्यंत सुदर्शन युवक था. बड़ी-बड़ी आंखें, घुंघराले बाल, चौड़ा माथा कि जैसे कोई देवपुत्र हो.
कौन हो तुम और उन पहाड़ियों पर क्या कर रहे थे?’
मेरा नाम जयकांत है. मैं एक कवि हूं और चंद्रकेतु से मिलने यहां आया हूं.’ इसपर चंद्रकेतु के साथी हंसने लगे. जयकांत का नाम वे सुन चुके थे. वह एक माना हुआ लोककवि था. मास्टर गंगाधर राव और अपने रचे गीत जोशीली आवाज में गाता था. उसके गीतों में ओज था. वह अंग्रेजों और उनके पिठ्ठू राजाओं से सावधान रहने को कहता. जिधर से भी वह गुजरता वहां क्रांति की लहर-सी दौड़ जाती. उसके गानों को सुनकर दीवानों में बलिदान की होड़-सी लग जाती थी. ऐसा अनूठा कलाकार जो ख्याति में चंद्रकेतु से जरा भी कम नहीं है; वह यहां वीराने में क्यों आएगा?’
हम कैसे मानें कि तुम जयकांत ही हो?’
विश्वास दिलाने के लिए मुझे क्या करना होगा?’
जयकांत का एक बहुत प्रसिद्ध गीत है जिसे वह .....’
क्या मुझे यहां भी अपने अधूरे जयगीतम् को सुनाना पड़ेगा?’
अधूरा, जिस गीत की धूम पूरे मध्य और दक्षिणी भारत की धरती पर मची है, उसे तुम अधूरा कहते हो.’
एक रचनाकार की दृष्टि में उसकी प्रत्येक रचना अधूरी ही रहती है. वक्त के साथ-साथ वह उसे हमेशा तराशता रहता है. फिर जयगीतम् तो युग के साथ-साथ चलने वाली रचना है. तो मैं गाना शुरू करूं?’
चलो मान लिया कि तुम्हीं जयकांत हो. अब बताओ तुम चंद्रकेतु से मिलना क्यों चाहते हो?’ वार्तालाप को संक्षिप्त करते हुए स्वयं चंद्रकेतु ने सवाल किया.
मुझे मालूम है कि बहादुर चंद्रकेतु के पास बड़ी सेना है. अंग्रेजों और उनके पिठ्ठू हिंदुस्तानी शासकों से लोहा लेने के लिए यह बहुत जरूरी भी है. पर इतनी बड़ी सेना के खर्च के लिए ढेर सारा धन भी चाहिए. मेरे पास एक समाचार है. यदि चंद्रकेतु चाहे तो वहां से इतना धन बटोर सकता कि अंग्रेजों से लंबा युद्ध लड़ सके.’
समाचार अच्छा था. संगठन चलाने के लिए दल को धन की हमेशा जरूरत रहती थी. कई काम धन की कमी के कारण हो भी नहीं पाते थे. ऐसे में आगंतुक का सुझाव बहुत काम का सिद्ध हो सकता था. इसलिए चंद्रकेतु ने सामने आना ही उचित समझा. परिचय पाते ही जयकांत ने चंद्रकेतु के चरण छूकर प्रणाम किया. फिर एक ओर खड़ा होकर बोला—
बहुत दिनों से आपके दर्शन की साध थी, वह आज पूरी हुई.’
अब आप हमें वह जानकारी दें जिसके लिए आपने यहां आने की तखलीफ उठाई है?’
सेठ भद्रसेन को तो आप जानते ही होंगे. उनका पुत्र वर्षों पहले व्यापार के लिए विदेश गया था. कल ही लौटा है. अपने साथ वह इतना धन कमाकर लाया है कि उससे बड़ी सेना खड़ी कर ब्रितानियों को बाहर खदेड़ा सकता है.’
इतना सुनते ही चंद्रकेतु की आंखों में कोप उतरने लगा. फिर भी बिना कोई गर्मी दिखाए उसने कहा—
तुम सेठ भद्रसेन के बारे में कितना जानते हो?’
उनके बारे थोड़ी जानकारी मुझे है. कुछ लोग उन्हें इस इलाके का भामाशाह भी मानते हैं.’
यह जानकर भी तुम यह प्रस्ताव मेरे सामने लाए हो?’ चंद्रकेतु ने घूरा.
इसलिए कि मैं मानता हूं कि देश किसी भी भामाशाह से बड़ा होता है. फिर कुछ भी हो सेठ भद्रसेन का असली मकसद तो मुनाफा कमाना ही है; जो आजादी के लक्ष्य के सामने बहुत छोटा है.’
मूर्ख हो तुम. और यदि तुम सचमुच ऐसा ही सोचते हो तो मुझे तुम्हारे जयकांत होने पर भी संदेह है.’ चंद्रकेतु ने गुस्से से कहा, ‘सेठ भद्रसेन दयालु प्रवृति के हैं. उन्होंने हमेशा ही क्रांतिकारियों की मदद की है. इसका कई बार नुकसान भी उठाना पड़ा है. दो बार वे जेल जा चुके हैं. फिर भी आज यदि मैं उनसे मदद के नाम पर उनके खजाने की चाबी भी मांग बैठूं तो मुझे पूरा विश्वास है कि वे पल भर भी सोचेंगे नहीं. उनकी दयालुता और दानवीरता से जनता परिचित है. ऐसे में यदि हम उनके धन को लूटें तो लोगों में हमारी क्या छवि बनेगी.’
सहसा जयकांत हंसने लगा. सब उसे हैरानी से देखने लगे.
मेरी यात्रा सफल हुई. अब मेरा अधूरा जयगीतम् भी पूरा हो जाएगा.’
कैसे?’
आप तो जानते हैं कि मेरे जयगीतम् में उन सभी बलिदानियों के नाम है जिन्होंने मां-भारती की गौरव रक्षा के लिए अपना सर्वस्व और सर्वोत्तम बलिदान किया है. बहुत दिनों से आपके शौर्य के बारे में सुनता आ रहा था. जयगीतम् को आगे बढाने के लिए आप जैसे ही किसी महानायक की तलाश थी. मगर गीत की प्रामाणिकता के लिए आपकी परीक्षा भी जरूरी थी. सेठ भद्रसेन सचमुच हमारे समय के भामाशाह हैं. पर उनके बेटे की कहानी मेरी गढ़ी हुई है. उनके परिवार में केवल एक विदुषी कन्या है.’ जयकांत ने बताया. चंद्रकेतु समेत वहां मौजूद सभी व्यक्ति शांत खड़े रहे किसी को कुछ न सूझा. अंततः जयकांत ने ही कहा-
आप आयु में मुझसे बड़े हैं. एक तरह से मैंने धृष्टता ही की है. आप चाहें तो मुझे दंड दे सकते हैं.’ उसकी बात सुनकर चंद्रकेतु ने उसको गले से लगा लिया. जयकांत कुछ दिनों तक उसके साथ रहा. फिर लौट आया.
थोडे़ दिन बाद उसने अपने गीत जयगीतम् का विस्तार किया. पूरे मान-सम्मान के साथ उसमें चंद्रकेतु का नाम जोड़ा. इसके बाद वह उसे जगह-जगह सुनाने लगा. जयकांत की ओज भरी भाषा में चंद्रकेतु के शौर्य की गाथाएं जनमानस में फैलने लगीं. उसका नाम जन-जन की जुबान पर छा गया. यह स्थिति अंगे्रजों और नबावों के प्रतिकूल थी. आमजन उन्हें खलनायक मानने लगा था. खुद चिम्मन खां शिकायत लेकर कंपनी दरबार में पहुंचा. तब क्षेत्रीय प्रशासक ने एक भारी-भरकम सेना का गठन किया और उसे चंद्रकेतु को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी सौंप दी. वह फौज कई महीने तक विंध्याचल की पहाड़ियों पर घेरा डाले पड़ी रही. मगर क्षेत्रीय निवासियों के सहयोग के कारण चंद्रकेतु तक पहुंच न सकी. उल्टे चंद्रकेतु ने छापामार उसके दांत खट्टे कर दिए. आखिरकार अग्रेज जनरल ने फौज को वहां से हटाने का आदेश दे दिया.
इस घटना के बाद चंद्रकेतु की प्रतिष्ठा और भी बढ गई. उसका नाम सुनकर नबाव कांपने लगे. घेरा हटने के साथ ही चंद्रकेतु ने भ्रष्ट नवाबों और राजाओं पर हमले तीव्र कर दिए. एक बड़े भूभाग को अंग्रेजों के प्रभाव से मुक्त करा लिया. मगर अंग्रे्रज भी शांत नहीं थे. सिर्फ अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा में थे. इसी कोशिश में वे चंद्रकेतु के एक करीबी आदमी को तोड़ने में कामयाब हो गए. उसी के माध्यम से संदेश भिजवाया गया कि वे समझौते को तैयार हैं.
मामला शांति से हल होता हो तो चंद्रकेतु भी खून-खराबे को तैयार नहीं था. इसीलिए वह मिलने को तैयार हो गया. तय तिथि पर वह अंग्रेज गवर्नर हेडली से मिलने चल दिया. उस समय उसके भरोसे के थोड़े से सैनिक ही उसके साथ थे. जिस समय चंद्रकेतु का कारवां गुजर रहा था, लोग उसके स्वागत के लिए रास्ते के दोनों ओर फूलमालाएं लिए खड़े थे. स्त्रियां और बच्चे छतों-अट्टालिकाओं से फूल बरसा रहे थे. आजादी का उत्साह चारों ओर था. तभी एक सुरीली मगर ओज भरी आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
अरे! यह तो जयकांत है. शुभअवसर पर खूब पधारे भइया. इस अवसर पर कोई अच्छा सा गीत सुनाओ.’ किसी ने कहा.
तब जयकांत ने नया गीत छेड़ दिया. जिसका मतलब था—
जब तक खूब जांच-परख न लो, तब तक दुश्मन पर भरोसा मत करो. दुश्मन बुलाए भी तो सावधान रहो. क्योंकि तुम अकेले नहीं हो तुम्हारे साथ दूसरों की उम्मीदें भी जुड़ी हैं. ना ही तुम्हारा संघर्ष केवल तुम्हारा है— उसमें दूसरों का खून-पसीना भी शामिल है...’
गीत चेताने वाला था. चंद्रकेतु संभल गया. उनका कारवां बस्ती पार कर जैसे ही मैदान में आया पीछे भगदड़ मच गई. किसी ने बताया कि जयकांत को गिरफ्तार कर लिया गया है. यह सुनते ही चंद्रकेतु पलटा. तभी पीछे झाड़ियों में छिपे अंग्रेज सैनिक बाहर निकल आए. घमासान लड़ाई छिड़ गई. चंद्रकेतु बहुत बहादुरी से लड़ा. किंतु अपने उसी गद्दार साथी के कारण पकड़ लिया गया.’

इतनी कहानी सुनाने के बाद पीपल शांत हो गया. नन्ही चिरैया भी कुछ देर गुमसुम-सी बैठी रही. हवा धीरे-धीरे बह रही थी. चारों ओर गहरा सन्नाटा था. उसे चिरैया की सांसों की आवाज और पीपल के पत्तों की आवाज जब-तब भंग कर देती थी.
दादा आगे क्या हुआ?’
आगे....!’ बताते हुए पीपल ने गहरी सांस ली. मन पर छाए बोझ को थोड़ा किनारे किया. फिर बोला—
जयकांत और चंद्रकेतु को पकड़कर मेरे नीचे लाया गया. चंद्रकेतु के साथ उसके कुछ सैनिक भी थे. उन दोनों के चेहरों पर गहरी मुस्कान थी. यह देखकर मैं तो दंग रह गया. कुछ देर बाद जनरल हेडली और चिम्मन खां भी पहुंच गए. दोनों मुझे जल्लाद की तरह दिख रहे थे. उनके आते ही मेरे तनों पर रस्सियां डाली जाने लगीं. मैं समझ गया. अपनी शाखाओं को हिला-हिला कर मैंने उनका खूब विरोध किया. पर वे जालिम कहां सुनने वाले थे. उस दिन मेरी आंखों के सामने ही जयकांत और चंद्रकेतु समेत इकीस लोगों को फांसी दी गई. अपने लंबे जीवन में उस दिन मैं पहली बार रोया. रोते-रोते मेरे सारे पत्ते झड़ गए. सिर्फ कंकाल रह गया मैं.
उसके बाद दुबारा कभी पत्ते नहीं आए?’
अंग्रेजों का शिकंजा धीरे-धीरे पूरे देश पर कसता गया. बहादुरी का दम भरने वाले सारे राजा-महाराजा उनके गुलाम होते चले गए. ऐसे गुलाम देश में किसके लिए सजता मैं! पंद्रह अगस्त को जब पूरा देश आजादी के शहीदों को नमन कर रहा था उस दिन भी उम्मीद बंधी थी. पर कोई नहीं आया. जयकांत और चंद्रकेतु की शहादत को बिसरा दिया गया.’ कहते-कहते पीपल का गला भर आया.
हम तो खुले आकाश में विचरने वाले पंछी हैं. मुल्कों की सीमाएं हमें बांध नहीं पातीं. इस लिए गुलामी के बारे में भी मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. यह बात भी मेरी समझ से बाहर है कि दूसरों को गुलाम बनाकर इंसान को हासिल क्या होता है. पर तुमसे बात करते-करते मुझे अपनी आजादी का एहसास होने लगा है. इसके साथ-साथ तुमने मेरी जान भी बचाई है.....मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूं.’
मैं भी तुम्हारा अहसानमंद हूं. इतने वर्षों बाद कम से कम तुमने मेरी बातें तो सुनीं.’
अब मैं चलूंगी. घर पर दोनों बच्चे मेरा इंतजार कर रह होंगे.’ कहकर चिरैया उड़ने के पंख फड़फड़ाने लगी. तभी जैसे कुछ याद आगया हो, बोली—
दादा तुमने बताया कि जयगीतम् में कुर्बानी का जज्बा था. उसको सुनकर लोगों के खून में उबाल आने लगता था. क्या वह दिव्य गीत तुमने भी सुना था?’
क्यों नहीं अपने इन्हीं कानों से सुना था. जयकांतन और चंद्रकेतु को जब फांसी दी जा रही थी तो दोनों उसी गीत को गा रहे थे. उस समय मेरी जो दशा थी उसका वर्णन मेरी जुबान नहीं कर सकती. समझ लो कि एक आग थी जो मेरे रोम में उतरती जा रही थी.’ पीपल ने बताया.
क्या तुम सुना सकते हो कि वह पवित्र गीत क्या था?’ चिरैया ने खुशामदी स्वर में कहा.
अर्सा बीत गया. वह गीत तो अब मुझे याद नहीं. पर कुछ बोल हैं जो आज भी इस ठूंठ को आजादी से परचाते रहते हैं.’ इसके बाद पीपल ने गुनगुनाना शुरू किया. नन्ही चिरैया भी उसके साथ गुनगुनाने लगी. तभी चमत्कार जैसा हुआ. ठूंठ पीपल में नई कोपलें फूटने लगीं. और देखते ही देखते वह फिर से हरियाने लगा.
जो देश अपने शहीदों को याद रखता है— वही फूलता-फलता है.

© ओमप्रकाश कश्यप