कुल पेज दृश्य

शनिवार, जनवरी 01, 2011

ईशान

आसमान में राह भटका नन्हा तारा धरती पर पहुंचा. घर छूटने पर वह उदास था. हर भूले-भटके को सहारा देने वाली धरती ने उसको भी सहारा दिया. गोद में लेकर दुलराया
धीरज रखो! घर का छूटना उम्मीदों का बिखर जाना नहीं होता.’
मेरा तो सभी कुछ खो चुका है. इस छोटी-सी जगह पर मैं भला कैसे रहूंगा...’
सच कहते हो. आसमान के विशाल आंगन के आगे भला मैं कहां! फिर भी तुम यहां रहने लगोगे तो धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा.’ धरती मुस्कराई. उसकी बातों में न जाने क्या आकर्षण था, तारा अपनी थकान भूलने लगा.
घूमता-घामता वह एक बाग में पहुंचा. वहां तरह-तरह के फूल खिले थे. रात की रानी, जूही, चंपा, हरसिंगार. बेला, चमेली, गुलाब, गैंदा...पूरा उपवन भीनी-भीनी गंध से सराबोर था. ऊपर से शीतल मंद समीर. सुबह अभी हुई नहीं थी, परंतु पूरब के कोने से लालिमा मुंह चमकाने लगी थी. सबकुछ शांत, स्निग्ध और मन को मोह लेने वाला था. तारा सुध-बुध खोने लगा. जिस फूल पर भी उसकी निगाह पड़ती, वहीं टिकी रह जाती
धरती इतनी सुंदर है, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था.’ उसके मुंह से बरबस निकला. रंग-बिरंगे फूलों को देख उसकी उदासी छंटने लगी. तारे को बगीचा इतना भाया कि आसमान का आंगन भी उसके आगे फीका लगने लगा. मंद समीरण उसको थपकी दे रहा था. नन्हे को झपकी आने लगी.
अगली सुबह माली उस बाग में पहुंचा. साथ में उसकी बेटी भी थी. नए फूल को बगीचे में देख दोनों की आंखें फटी की फटी रह गईं.
आश्चर्य! ऐसा फूल तो मैंने पहले कभी नहीं देखा था.’ माली के मुंह से निकला. इसके बाद वह अपनी बेटी की ओर मुड़ा, ‘नीला बेटी, तुमने यदि इस फूल के बारे में कुछ पढ़ा हो तो बताओ?’
यह अनूठा है...मैं बस इतना ही कह सकती हूं.’ नन्हे तारे को एकटक निहारती उस लड़की ने कहा. माली भी अपनी सुध-बुध बिसराए उसको देखता रहा.
पापा धरती पर सबका कोई न कोई नाम होता है...हमें इसका नाम रखना चाहिए...’
नाम?’ माली अचकचा गया, ‘अच्छा तुम्हीं बताओ, इसका क्या नाम हो सकता है?’
यह सूरज की किरणों के साथ सुनहली आभा लिए उतरा है, इसका नाम होगाईशान!’ नीला ने कहा. जैसे पहले से ही सबकुछ सोचे बैठी हो. उस समय उसका चेहरा पहली धूप-सा दमक रहा था.
ईशान!’ नन्हे तारे ने दोहराया, ‘शुक्र है, मुझे कोई नाम तो मिला. वहां अंबर में तो मैं सिर्फ एक ‘तारा’ ही था.’
उस दिन धरती पर मिले प्यार से नन्हा तारा इतना अभिभूत हुआ कि उसने वापस लौटने का इरादा ही छोड़ दिया.

ओमप्रकाश कश्यप 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें