बस्ती
के बाहर बरगद के चार जंगी पेड़
थे.
जिनपर
कोयलें कूकतीं,
पक्षी
चहचहाते.
गिलहरी
ऊपर-नीचे
घूमती.
बंदर
धमा-चौकड़ी
मचाते.
रोज
उनपर हरियाली नजर आती.
या
नई कोंपलों से फूटती हुई लालिमा.
या
फिर दूर-दराज
से उड़कर आए नए-सुहाने
गीत गाते,
चहचहाते
पक्षी.
परंतु
उस दिन चारों पेड़ों की परस्पर
गलबहियां लेती शाखाएं,
पत्ते,
कोपलें,
तनों
से फूटते हरे-पीले
बड़गूलर,
धरती
में ठिकाना खोजने को आतुर
लंबी-लंबी
जड़ें,
जिन्हें
सब बरगद की दाढ़ी कहते थे,
सब
काले नजर आ रहे थे.
यह
न तो प्रकृति का कोप था,
न
बरगद को अकस्मात किसी बीमारी
ने आ घेरा था.
फिर
भी था कुछ अनहोना ही.
प्राणीमात्र
की कल्पना से परे.
उस
दिन बरगदों पर लाखों मधुमक्खियों
का जमाबड़ा था.
उनसे
लदे बरगद ऐसे दिख रहे थे,
मानो
किसी ने उन्हें सूखे गोबर से
पाथ दिया हो.
या
फिर चार काली पहाड़ियां धरती
का सीना चीर अचानक उग आई हों.
हवा
शांत थी.
मगर
बरगद के पास जोर की सनसनाहट
गूंज रही थी.
मधुमक्खियों
में कुछ आसपास के गांवों की
थीं.
कुछ
पचासियों मील की यात्रा के
बाद वहां पहुंची थीं.
उन्हें
न्योता देकर बुलाया गया था.
सब
की सब गुस्से में थीं.
बल्कि
यूं कहो कि बहुत गुस्से में
थीं.
उनके
गुस्से का अनुमान उनके तेज
हिलते पंखों से लगाया जा सकता
था.
जो
इतना तेज था,
इतना
तेज कि अगर बरगद की पीली पत्तियां
मधुमक्खियों से लदी न होतीं
तो आंधी के अंदेशे में कभी की
धराशायी हो जातीं.
जिस
सभा के लिए उन्हें बुलाया गया
था,
उनमें
अभी देर थी.
यह
देर मधुमक्खियों के गुस्से
को और भी भड़का रही थी—
‘बहुत
सह लिया,
अब
बस!
बौराये
आदमी का दिमाग ठिकाने लगाना
ही पड़ेगा.’
‘बिलकुल,
आज
इस गांव में छत्ता उजाड़ा है,
कल
किसी दूसरे गांव के छत्ते पर
उसकी नजर पड़ेगी.
उससे
पहले हमें उसका इलाज करना
होगा.’
‘बिलकुल!
ऐसे
कि आगे किसी छत्ते पर नजर टिकाने
की उसकी हिम्मत ही न पड़े.’
‘कितना
गर्व था हमें उस छत्ते पर.
सूरज
की मानिंद चमकीला,
धरती
की मानिंद गोल और पवित्र.
मानो
किसी ने कोरी चट्टान को चपटा
कर बरगद से लटका दिया हो.
इस
गांव में तो क्या,
सौ-सौ
कोस तक वैसा छत्ता नहीं है.’
‘इस
छत्ते के कारण यहां की मधुमक्खियों
का मान था,
जहां
जाएं वहीं इज्जत मिलती थी.
सैकड़ों
कोस दूर से मधुमक्खियां उसे
देखने आती थीं.’
‘मैंने
उसकी शहद से लबालब,
गहरी,
घुमावदार,
तिलिस्मी
किले की सुरंग जैसी कोटरों
को देखा था....बेरहम
आदमी ने उसे एक झटके में तोड़
डाला.’
‘शी...चुप
हो जाओ.
रानी
मधुमक्खी और सम्राट पधार रहे
हैं.
सुना
है बहुत गुस्से में हैं.
आगे
जो भी करना है,
वही
बताएंगे.’
‘यह
आर-पार
की लड़ाई का समय है.
इसके
सिवाय रास्ता ही क्या है?
एक
युवा मधुमक्खी ने कहा.
तभी
बरगद की उत्तरी शिखा सारी
मधुमक्खियां शांत हो गईं.
अब
वहां पंखों की भिनभिनाहट थी.
सहसा
कुछ हलचल-सी
हुई.
सम्राट
और रानी मधुमक्खी आकर बरगद
की ऊंची डाल पर बैठ गईं.
दोनों
के हाव-भाव
उनके गुस्से को दर्शा रहे थे.
समय
न गंवाते हुए रानी मधुमक्खी
ने कहा—
‘दूर-दूर
से पधारी हुई मेरी कमेरी बहनो!
यह
निर्णय लेने का समय है.
हम
आदमी की निष्ठुरता को अर्से
से बर्दाश्त करती आ रही हैं.
हमारी
कमेरी बहनें फूल-फूल
पर जाकर कड़ी मेहनत के बाद छत्ता
बनाती हैं.
फिर
फूलों से पराग-कण
लेकर उसमें शहद जमा करती हैं.
ताकि
हमारे बच्चे जिनके अभी पंख
नहीं उगे हैं,
अपना
पेट भर सकें.
आदमी
एक झटके में हमारे छत्तों को
उजाड़ देता है.
हमें
भगाने के लिए वह आग से हमला
करता है.
जिससे
हमारे पंख झुलस जाते हैं.
छत्ते
को तोड़कर बुरी तरह मसल देता
है.
अर्से
से हम आदमी की निर्दयता को
शिकार होती आई हैं.
इस
गांव का छत्ता आदमी की बुरी
नजर से दूर था.
हमें
इतने से ही संतोष था.
कल
गांववालों ने हमारे पूर्वजों
का छत्ता तोड़कर दिखा दिया कि
उनमें जरा-भी
दया-ममता
नहीं है.
उस
छत्ते से हमारी शान थी.
साथियो!
आदमी
ने हमारी गैरत को ललकारा है.’
‘मैंने
देखा,
उसमें
नांद-भर
शहद निकला था.’
एक
मधुमक्खी ने बीच में टोका तो
आसपास की मधुमक्खियों ने उसे
डपट दिया—‘चुप रहो,
रानी
साहिबा बोल रही हैं.’
‘बोलने
दो उसे.
उसका
गुस्सा जायज है.
मैंने
भी सुना है.
छत्ते
से निकला शहद चौपाल पर बांटा
गया था.
उसके
बाद गांववालों ने उत्सव मनाया
था.
हमें
अपने गुस्से को मरने नहीं देना
है.
आदमी
को सबक सिखाना है.
आगे
की कार्रवाही के बारे में
सम्राट खुद बताएंगे.’
कहकर
रानी मधुमक्खी बैठ गई.
उसके
तुरंत बाद सम्राट मधुमक्खी
खड़ी हुई.
उसके
चौड़े और गहरी लालिमा लिए पंख
बहुत तेजी-से
हिल रहे थे.
चेहरा
गुस्से से लाल था.
बिना
किसी भूमिका के सम्राट मधुमक्खी
ने कहना आरंभ किया—
‘आदमी
ने हमारी सहनशीलता को ललकारा
है.
हमने
आदमी के लिए न जाने कितनी जंगे
लड़ी हैं.
पर
यह लड़ाई हमारे अपने मान-सम्मान
के लिए है.
हम
एक व्यूह रचना के तहत कार्रवाही
करेंगे.
गांववालों
पर तीन दिशाओं से एक साथ हमला
होगा.
इसके
लिए कुल मधुमक्खियों को तीन
हिस्सों में बांटा गया है.
टुकड़ियों
का नेतृत्व युवराज मक्खियां
करेंगी.
हमला
पूरी ताकत के साथ होगा.
तीनों
दिशाओं से ढकेलते हुए हम
गांववालों को पीछे की ओर ले
जाएंगी.’
‘इससे
तो उन्हें बचकर भागने का अवसर
मिल जाएगा.’
एक
मधुमक्खी ने सवाल किया.
‘तुम
शायद यहां के लिए नई हो.
चौथी
दिशा में नदी है.
हमारी
सैन्य टुकड़ियां गांववालों
को नदी-पार
ढकेलकर ही दम लेंगी.
उसके
बाद इस बस्ती पर हमारा अधिकार
होगा.
हम
इसे अपनी राजधानी बनाएंगे.
उसके
बाद यहां एक विशाल छत्ते का
निर्माण हम सब मिलकर करेंगी.
वह
दुनिया के लिए आठवां अजूबा
होगा....’
सम्राट
मधुमक्खी की इस घोषणा पर
मधुमक्खियों ने पंख हिलाकर
सहमति दी.
सम्राट
मधुमक्खी बोलती गईं—
‘अब
हमें धावा बोलना है.
परंतु
याद रहे कि हमारी लड़ाई आदमी
से नहीं,
उसकी
स्वार्थपरता से है.
हमले
के दौरान किसी कमजोर,
बाल-वृद्ध,
पशु-पक्षी
या अपंग को कोई चोट नहीं पहुंचनी
चाहिए....’
‘जी,
आदेश
का पालन का पालन होगा....हम
हमले के लिए पूरी तरह तैयार
हैं.’
तीनों
मधुमक्खियों ने अपने पंख उठाकर
सैन्य अनुशासन के साथ कहा.
‘शाबाश!’
सम्राट
मधुमक्खी बोली,
‘जीत
हमारी ही होगी.
सूरज
उठान पर है.
हमला
करने का समय आ गया है.
आगे
बढ़ो और गांव को खाली कराकर
उसपर कब्जा कर लो.
आदमी
को दिखा दो कि प्यार में शहद
की मिठास बांटने वाली मधुमक्खियां
अपने मान-सम्मान
की रक्षा में तेजाब भी उगल
सकती हैं.
चार
घंटे बाद हम यहीं मिलेंगी.
गांव
खाली कराने के लिए इतना समय
बहुत है.’
इसी
के साथ सनसनाहट उभरी.
मधुमक्खियों
ने पंख खोले.
तेज
झंझावात के साथ मधुमक्खियों
के तीन सैन्यदल तीन दिशाओं
में बढ़ते हुए नजर आए.
चारों
बरगद,
उनकी
शाखाएं,
हरी
पत्तियां,
बड़गूलर
और गुलाबी कोपलें फिर चमकने
लगीं.
एक
घंटा भी पूरा नहीं हुआ था कि
पूरब दिशा में उमड़ती काली
बदरिया जैसा कुछ दिखाई पड़ा.
कुछ
ही देर बाद उस दिशा में गया
सैन्य दल वापस आ गया.
सेनापति
की गर्दन लटकी हुई थी.
सम्राट
या रानी मधुमक्खी कुछ पूछ पाएं
उससे पहले ही दक्षिण दिशा की
ओर गया दल भी लौट आया.
‘जरूर
कुछ अनहोना हुआ है.’
सम्राट
मधुमक्खी ने सोचा.
सहसा
पश्चिम दिशा में काला अंधड़-सा
दिखाई पड़ा.
सबको
हतप्रभ करता हुआ उस दिशा में
गया सैन्य दल भी वापस आ गया.
चारों
बरगद फिर स्याह पहाड़ नजर आने
लगे.
युवराज
मधुमक्खियां जिन्हें हमले
की जिम्मेदारी सौंपी गई थी,
अपने
दल के आगे मुंह लटकाए बैठी
थीं.
बाकी
मधुमक्खियां भी शांत थीं.
रवाना
होने से पहले जो गुस्सा था,
अब
वह गायब था.
उनके
पंख बस उतने हिल रहे थे,
जितने
संतुलन बनाने के लिए जरूरी
थे.
उनकी
हालत देख सम्राट मधुमक्खी
खड़ी हुई,
बोली—
‘आप
सबकी वीरता,
साहस
और कर्तव्यनिष्ठा पर मुझे
पूरा भरोसा है.
मगर
तीनों दलों का इस तरह खाली हाथ
लौटना दिखाता है कि कुछ अनहोना
घटा है.
आखिर
वह इन्सान है.
अपने
बुद्धिबल से उसने प्रकृति पर
विजय प्राप्त की है.
वह
इतनी जल्दी हार मान लेगा,
यह
तो संभव ही नहीं है.
मैं
बस इतना जानना चाहता हूं कि
इस बार आदमी ने कौन-सी
चाल चली जो हमारी लाखों
मधुमक्खियों को बिना हमला
किए उल्टे पंख लौटना पड़ा.
‘कुसमाकर
क्या तुम कुछ बताओगी?’
सम्राट
ने पश्चिम के अभियान पर गई
टुकड़ी की मुखिया मधुमक्खी से
पूछा.
वह
तेज-तर्रार,
फुर्तीली,
बहुत
ही लड़ाकू और तीनों सेनापतियों
में सबसे युवा मधुमक्खी थी.
सम्राट
का आदेश मिलते ही उसने कहा—
‘क्षमा
चाहती हूं महाराज!
मेरे
दल में अस्सी हजार मधुमक्खियां
थीं.
हम
सोच रही थीं सात-आठ
सौ आदमियों से गांव खाली कराने
के लिए तो हम ही काफी थीं.
महाराज
ने बेकार और दलों को अभियान
में शामिल किया.
व्यूह
रचना के अनुसार हमारी जिम्मेदारी
पश्चिम दिशा में बाड़ की तरह
आगे बढ़ना था,
ताकि
दक्षिणी दल जब हमला करे तो
गांववाले उस दिशा से भाग न
पाएं.
अपनी
जीत पर हमें पूरा भरोसा था.
जैसे
ही हमारा दल गांव की सीमा पर
पहुंचा,
वहां
हमने देखा कि खुले मैदान में
बहुत सारे बच्चे खेल रहे हैं.
उनके
चेहरों पर फूल जैसी कोमलता
थी,
मन
में उमंग.
उनके
मासूम चेहरों को देखकर हमें
लगा मानो उन्हें अर्से के बाद
खुशी मनाने का अवसर मिला है.
मेरी
हिम्मत न पड़ी कि मासूम बच्चों
पर हमला कर उन्हें दर्द से
बिलबिलाने के छोड़ दूं....मैं
क्षमा चाहती हूं महाराज.’
‘और
तुम्हारे साथ क्या घटा परागन?’
सम्राट
ने पूरब दिशा की ओर गए दलपति
से पूछा.
‘महाराज!
कुसुमाकर
के दल की भांति हमारा दल भी
जोश से भरा था.
मेरी
आंखों में स्वतंत्र मधुमक्खी
राज्य का सपना कौंध रहा था.
इसलिए
हम पूरे उत्साह से आगे बढ़ रहे
थे.
मगर
जैसे ही बस्ती के करीब पहुंचे,
स्त्रिायों
का एक दल मंगलाचार करते हुए
गांव से बाहर की ओर आता हुआ
दिखाई दिया.
दर्जनों
स्त्रियां सिर पर पानी से भरे
कलश लिए प्रकृति पूजन के लिए
निकली हुई थीं.
उनके
होठों पर जो गीत था,
उसमें
प्राणीमात्र के मंगल की कामना
थी.
उनमें
वे स्त्रियां भी थीं,
जो
पेड़ों को कटने से बचाने के लिए
उनसे चिपट गई थीं.
ऐसी
दयालु,
सर्वमंगल
की कामना करनेवाली तथा वन-वनस्पति
की रक्षा के लिए जान की बाजी
लगा देनेवाली स्त्रियों पर
भला हम कैसे हमला करतीं.
उनकी
सौम्याकृति देख मेरा क्रोध
जाता रहा.
इसलिए
खाली हाथ लौटना पड़ा.’
‘जिस
प्राणी के दिल में दया है,
दूसरों
के प्रति कल्याण की भावना है,
उसको
कष्ट देना मधुमक्खी धर्म के
विरुद्ध है.
तुमने
अच्छा ही किया.
मैं
होता तो भी यही करता.’
कहकर
सम्राट तीसरे दलपति शैलांधर
मधुमक्खी की ओर मुड़े—‘तुम
बताओ,
शैलांधर
तुम्हारा दल तो इन सबसे बड़ा
था.
यदि
तुम अकेले ही हमला बोल देते
आदमी के लिए पांव जमाना मुश्किल
हो जाता.’
‘माफी
चाहता हूं हुजूर.’
शैलांधर
मधुमक्खी जो बाकी सबसे भारी-भरकम
थी,
बोली—‘सचमुच!
मेरे
दल में इनसे दुगुनी,
सबसे
तेज,
निडर
और जांबाज मधुमक्खियां थीं.
अगर
हम हमला करतीं तो गांववालों
को पांव टिकाना मुश्किल हो
जाता.
फिर
भी महाराज मुझे खाली हाथ लौटना
पड़ा.
गांव
की सीमा में प्रवेश करते ही
मैंने जो देखा-सुना
उससे मेरी आगे बढ़ने की इच्छा
ही समाप्त हो गई.’
‘जो
हुआ,
उसके
बारे में बयान करो.’
‘महाराज!
अपने
दल के साथ मैंने जैसे ही गांव
में प्रवेश किया,
हमारी
नजर लहलहाती हुई फसलों पर पड़ी.
कुछ
खेतों को छोड़कर बाकी सब में
हरियाली छितरी थी.
कई
खेतों में पीली सरसों लहलहा
रही थी.
उन्हें
देख हमारे पंखों का ठहर जाना
स्वाभाविक था.
खाली
खेतों में किसान हल-बैल
और अपने परिवार के साथ बुवाई
में लगे थे.
उनके
शरीर पसीने से तर-बतर
थे.
हम
जानते थे कि जिन खेतों से हम
पराग कण जुटाती हैं,
वे
किसान के पसीने से ही लहलहाते
हैं.
इसलिए
मुझे लगा कि आगे बढ़ने से पहले
किसान परिवारों को चेतावनी
दे देना ही वीरोचित कर्म है.
यही
सोचकर मैं एक किसान के पास
पहुंची और उससे कहा—
‘इस
गांव पर मधुमक्खियों का हमला
होने वाला है.
अच्छा
होगा कि तुम अपने परिवार को
लेकर नदी पार चले जाओ.’
‘तुम
झूठी हो.
मधुमक्खियां
तो हमारे परिवार का हिस्सा
हैं.
वे
हमपर क्यों हमला करने लगीं.’
किसान
बोला.
मैं
यह देखकर हैरान था बैल भी उसकी
‘हां’ में ‘हां’ मिला रहे थे.
‘बकवास!
हम
मधुमक्खियां भला तुम इन्सानों
के परिवार का हिस्सा कैसे हो
सकती हैं?’
‘इसमें
संदेह कैसा....न
केवल मधुमक्खियां बल्कि
पशु-पक्षी
यहां तक कि जंगली प्राणी भी
हमारे परिवार का हिस्सा हैं.’
‘जो
कहना है,
साफ-साफ
कहो.’
‘किसान
हूं....पर
बैल साथ न दें तो क्या मैं खेत
जोत पाऊंगा!
दिन-रात
यहां जंगल में काम करना पड़ता
है.
कभी
कोई आदमी होता है,
कभी
नहीं भी होता.
ऐसे
में ये पक्षी ही हैं जो अकेलेपन
का एहसास तक नहीं होने देते.
इनका
कलरव सुन थकान उड़न-छू
हो जाती है....और
वन्यजीव माना कि वे बहुत खतरनाक
होते है.
लेकिन
वे जंगलों की शान और उनके असली
संरक्षक हैं.
यदि
वे न होते तो स्वार्थी इन्सान
उन्हें कभी का काट-जलाकर
बराबर कर देता.’
‘हम
मधुमक्खियों के बारे में तो
तुमने बताया ही नहीं.’
‘प्रकृति
की संपन्नता में तुम्हारा
योगदान भी कम नहीं है.
मधुमक्खियां
के बगैर फूलों का एक-दूसरे
से मिलन ही न हो और सारी हरियाली,
फूल
बेकार हो जाएं.
खेतों
में फसल तो दिखे पर खलिहान
खाली रह आएं.’
‘तुम
अगर मधुमक्खियों को अपना मानते
हो तो कल वह छत्ता क्यों तोड़
डाला?’
‘उसको
तोड़ने का अफसोस तो पूरे गांव
को है.
उसके
कारण इस गांव की भी इज्जत थी.
कोई
उसे हाथ नहीं लगाना चाहता था,
परंतु
हालात के आगे किसका जोर चला
है.’
कहते-कहते
किसान उदास हो गया.
‘पहेलियां
मत बूझो,
इतना
समय नहीं है हमारे पास.’
‘क्या
मैं तुम्हें खाली दिख रहा हूं.
खेती
पहले ही पिछेती हो चुकी है.
इतना
बड़ा खेत देख रहे हो न!
पूरा
जोतने के बाद ही दम लूंगा.’
उसके
शब्दों में सचाई थी.
आत्मविश्वास
इतना मानो पतली काया में पूरा
ब्रह्माण्ड समाया हुआ हो.
‘दिखते
तो ईमानदार और मेहनती हो,
अकड़ू
भी कम नहीं लगते.’
‘इस
गांव में मुझसे कहीं ज्यादा
और मेहनती और ईमानदार लोग बसते
हैं.
इसके
बावजूद कुदरत मुंह फेरे रही.
आसमान
ताकते पूरा बरस गुजर गया,
पर
धरती पर पानी की बूंद न पड़ी.
सिर
पर लगान चढ़ गया.
सरकार
के आगे फरियाद कर जैसे-तैसे
चुकाने के लिए वक्त लिया.
अगले
साल की उम्मीद बनी रहे इसके
लिए बुवाई धरती में बीज डालना
जरूरी था.
आपस
में मिल-बैठकर
जो बीज जमा हुआ उससे केवल
तीन-चौथाई
खेतों की बुवाई हो सकी.
किसान
खुद तो भूखा सो जाए,
परंतु
धरती में बीज न पड़ें तो रातों
की नींद उड़ जाती है.
परती
रह गए खेतों की बुवाई को लेकर
सभी चिंचित थे कि त्योहार आ
गया.
पूरा
गांव उदास था.
भूखे
पेटे कैसे त्योहार मने!
सुनकर
बच्चे-बूढे़
सब उदास हो गए.
जीवन
में दुखों के साथ जीना संभव
है.
मगर
जीने का उत्साह खत्म हो जाए
तो चारों ओर बिखरा सुख भी मन
को नहीं भाता.
इसलिए
गांववालों ने तय किया कि त्योहार
के लिए सब चौपाल पर जमा होंगे.
नाच-गाने,
ढोल-तमाशे
के साथ त्योहार की रस्म अदाकर
अपने-अपने
घर लौट जाएंगे.
लेकिन
चौपाल की भी मर्यादा होती है.
सभा
की समाप्ति पर लोगों का मुंह
जरूर मीठा कराया जाता है.
ताकि
आपसी भाईचारा और संबंधों की
मिठास बनी रहे.
लेकिन
पूरे साल चली कुदरत की नाराजगी
ने गांववालों को इतना कंगाल
बना दिया था,
कि
मीठे का इंतजाम करना बड़ी समस्या
थी.
उसी
समय किसी का ध्यान चौराहे के
बरगद पर लगे बर्र के छत्ते की
ओर गया.
उसी
ने सलाह दी कि लोगों का शहद से
मुंह मीठा कराया जाए.
जो
शहद बचे उसे बेचकर बीज खरीदा
जाए,
ताकि
खाली पड़े खेतों की बुबाई हो
सके.
यह
सुनकर प्रधानजी तो नाराज हो
गए.
उस
आदमी को मारने के लिए दौड़े.
इस
पर कुछ लोगों ने उन्हें समझाया
कि केवल आदमी ही नहीं,
अन्य
प्राणियों का जीवन भी खेती
से बंधा है.
खेत
खाली रहे तो मधुमक्खियां भी
कहां टिक पाएंगी!
गांव
में एक भी आदमी ऐसा नहीं था जो
छत्ता तोड़ने से सुखी हो.
शहद
बेचकर जो बीज मिले हैं,
उन्हें
बोने के लिए गांववालों ने आज
हल-उत्सव
का आयोजन किया है.
जिसमंे
किसान कंधे पर हल रख,
एक
साथ काम पर निकलते हैं.’
कहकर
शैलांधर चुप हुई.
उसकी
बातें सुन सम्राट मधुमक्खी
स्तब्ध रह गई—
‘हमने
गांववालों को कितना बुरा समझा
था....तुम
तीनों ने बहुत अच्छा किया.
सबसे
बुद्धिमान प्राणी होने के
बावजूद मनुष्य यदि हम जैसे
छोटे प्राणियों को अपने परिवार
का सदस्य मानता है तो उसे पराया
मानना क्षुद्रता होगी.’
‘हमारे
लिए क्या आदेश है.’
सैनिक
मधुमक्खी ने पूछा.
‘भूख
प्राणी की नैतिकता को खा जाती
है.
परंतु
इस गांव के किसान आज भी अपने
नैतिक आचरण से डिगे नहीं हैं.
उन्होंने
हमें अपने परिवार का हिस्सा
माना है.
हमें
दिखा देना है कि रिश्ते निभाने
में हम भी पीछे नहीं हैं.’
कहकर
सम्राट मधुमक्खी उठ गई.
उसके
साथ-साथ
रानी मधुमक्खी भी.
फिर
तो बाकी सभी मधुमक्खियां खड़ी
हो गईं.
‘आप
सब मेरे पीछे-पीछे
आइए....’
सम्राट
मधुमक्खी ने आदेश दिया.
‘कहां
महाराज?’
रानी
मधुमक्खी ने पूछा.
‘ये
खेत देख रही हो....’
सम्राट
मधुमक्खी ने दूर-दूर
तक फैले पीली सरसों से भरे
खेतों की ओर संकेत करते हुए
कहा,
‘इन
खेतों को हम अपने भोजन का कटोरा
मानते हैं.
ये
सब किसान के परिश्रम की कमाई
हैं.
हमें
कुछ ऐसा करना है,
ताकि
इस गांवों के किसानों के
घर-भंडार
पूरी तरह भर जाएं.’
‘समझ
गई,
हमें
एक फूल के पराग को दूसरे फूल
तक ले जाना है,
ताकि
आने वाली फसल लहलहा उठे.’
‘ठीक
कहा और समझ लो,
आगे
से न मैं सम्राट हूं न तुम रानी
मधुमक्खी.
अपनी
कमेरी बहनों की तरह हम भी कमेरी
मधुमक्खियां हैं.
इस
गांव के किसान की भांति हमें
भी अपनी मेहनत पर भरोसा करना
है.’
सम्राट
मधुमक्खी की बात एक कमेरी
मधुमक्खी के कानों तक पहुंची
तो वह भाव-विह्वल
होकर साथ चल रही कमेरी मधुमक्खी
से बोली—‘देखा,
सम्राट
मधुमक्खी कितनी अच्छी हैं.
अब
जल्दी-जल्दी
चलो,
हमें
उन दोनों के लिए नया घर बनाना
है.’
कुछ
देर बाद सभी मधुमक्खियां आसमान
में थीं.
एक
फूल से दूसरे फूल पर मंडरातीं,
गाती-गुनगुनातीं
और गांव-भर
के लिए खुशहाली का संदेश लाती
हुईं.
ओमप्रकाश
कश्यप