आफत बली
अकेली क्या-क्या कलूं मैं?
नन्हे ने छिः छिः कल दी
मम्मी पूजा घल में
इछको धुलाना है
पौंछा लगाना है
खुद भी ना-धोकल
पल्हने को जाना है
काम ज्यादा
छमय कम
छब कुछ मुझी को
अबी-फौलन निपताना है
कैछे कलूं
कैछे कलूं
कैछे कलूं मैं....
ढेल छाले काम बोलो
कैछे कलूं में?
आते ही दफ्तल से
पापा बोलें—कुल्छी लाओ
पानी लाओ, चाय लाओ,
बिटिया लानी, जल्दी आओ
गुप-चुप छहेली बोलें
काम छोलो, बाहल आओ
पापा को पानी देकल
छखियों को ‘बाय’ कहकल
होमवर्क निपताना है
भइया को बहलाना है
खेलने भी जाना है
यह भी कलूं
वह भी कलू
क्या कलूं
कितना कलूं
कब तक कलूं मैं
ओमप्रकाश कश्यप
बहुत ही प्याली कविता।
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